Solar Pump Subsidy Yojana – के तहत किसानों को सिंचाई के लिए सोलर पंप लगाने पर भारी सब्सिडी दी जाती है, कई राज्यों में प्रभावी समर्थन 70% से 90% तक पहुँचता है और शेष अंश किसान/बैंक लोन से कवर होता है। लाभ सीधे DBT के माध्यम से बैंक खाते में/या परियोजना बिल पर समायोजन के रूप में मिलता है, जिससे शुरुआत की लागत काफी घट जाती है। सोलर पंप से डीज़ल/बिजली पर निर्भरता कम होती है, फसल चक्र समय पर चल पाता है और इनपुट लागत (ईंधन, रख-रखाव) में स्पष्ट कमी आती है। दिन के उजाले में बिना बिल के सिंचाई होने से खेत का कमांड एरिया बढ़ता है, माइक्रो-इरिगेशन जोड़ने पर पानी/ऊर्जा दोनों की बचत होती है। योजना का फोकस छोटे/सीमांत किसानों तक पहुँच बनाना है; वहीं FPO/कस्टम हायरिंग सेंटर मॉडल के ज़रिए साझा उपयोग भी प्रोत्साहित है। ध्यान दें—सब्सिडी प्रतिशत, पंप क्षमता, ग्रिड/ऑफ-ग्रिड मॉडल और अधिकतम वित्तीय सीमा राज्य/वर्ष-विशेष के अनुसार बदल सकती है, इसलिए आधिकारिक पोर्टल/नोटिफिकेशन ही अंतिम माने जाएँ। सही वेंडर चयन, साइट असेसमेंट और AMC के साथ यह निवेश 2–4 सीज़न में अपनी लागत वसूल कर सकता है और लंबे समय तक स्थिर सिंचाई सुनिश्चित करता है।

पात्रता, कवरेज और सब्सिडी स्ट्रक्चर
आम तौर पर पात्रता में—(1) किसान का वैध पहचान व बैंक खाता, (2) भू-अधिकार/पट्टा दस्तावेज़, (3) जलस्रोत (बोरवेल/ओपनवेल/सतही स्रोत) का प्रमाण, और (4) स्थानीय डिस्कॉम/जल संसाधन विभाग से आवश्यक अनुमति शामिल होती है। कई जगह 2 HP से 10 HP तक के DC/AC सोलर पंप कवर होते हैं; साइट की हेड/डिस्चार्ज ज़रूरत देखकर क्षमता तय की जाती है। प्रभावी सब्सिडी संरचना प्रायः “केंद्र + राज्य + किसान योगदान + (वैकल्पिक) बैंक लोन” मॉडल पर चलती है; कुछ राज्यों में अतिरिक्त Top-up से किसान का योगदान 10–20% तक सिमट सकता है, जबकि अधिकतम सीमा/कैप लागू रहती है। ग्रिड-कनेक्ट/हाइब्रिड विकल्पों में नेट-मीटरिंग/फीड-इन नीति स्थानीय नियमों पर निर्भर करती है। SC/ST, सीमांत, पहाड़ी/सूखा-प्रभावित क्षेत्रों, या माइक्रो-इरिगेशन अपनाने पर प्राथमिकता/अतिरिक्त लाभ मिल सकते हैं। वेंडर आमतौर पर एम्पैनल्ड होते हैं; गैर-अधिकृत आपूर्तिकर्ता से खरीद पर सब्सिडी अटक सकती है। योजना-वार गारंटी/वारंटी, बीमा, और सेवा-स्तर समझौते (SLA) भी अनिवार्य किए जाते हैं।
आवेदन प्रक्रिया, आवश्यक दस्तावेज़ और समय-सीमा
आवेदन सामान्यतः राज्य के नवीकरणीय ऊर्जा/कृषि विभाग के पोर्टल पर होता है: किसान प्रोफ़ाइल बनाएं, भूमि/जलस्रोत विवरण भरें, क्षमता चुनें और एम्पैनल्ड वेंडर का चयन करें। अनिवार्य दस्तावेज़—आधार, बैंक पासबुक/IFSC, फोटो, भूमि दस्तावेज़ (खसरा/खतौनी/RTC), जलस्रोत प्रमाण, पिछले फसल/सिंचाई पैटर्न का संक्षिप्त ब्योरा, और यदि लागू हो तो SC/ST/पर्वतीय/सीमान्त किसान का प्रमाण। टेक्नो-इकोनॉमिक असेसमेंट/साइट सर्वे के बाद स्वीकृति-जारी, लोन (यदि चुना हो) और वेंडर PO बनता है। सिस्टम डिलीवरी/इंस्टॉल के बाद जॉइंट इन्स्पेक्शन व कमीशनिंग होती है; उसके पश्चात DBT/सब्सिडी रिलीज़ नोटिफिकेशन के अनुसार खाते में/इनवॉयस एडजस्टमेंट के रूप में लागू होती है। समय-सीमा टेंडर/लॉट/सीज़न पर निर्भर करती है; कट-ऑफ तिथियाँ, प्रतीक्षा सूची और फंड उपलब्धता की शर्तें पढ़ना आवश्यक है। केवल पोर्टल पर दर्शाए भुगतान मोड अपनाएँ; नकद/आउट-ऑफ़-पोर्टल पेमेंट से बचें।
लागत, बचत और पेबैक: एक उदाहरण
मान लें 5 HP AC सोलर पंप का टर्न-की खर्च ~₹3.8 लाख है। यदि प्रभावी सब्सिडी 80% है, तो किसान अंश ~₹76,000 बचेगा (कर/फ्रेट/सिविल वर्क अलग हो सकते हैं)। जो किसान पहले डीज़ल पंप से सालाना ~600–800 घंटे सिंचाई करता है, वह ईंधन/ऑयल/मेंटेनेन्स में ~₹60,000–₹1,00,000 प्रति वर्ष तक बचत देख सकता है (स्थानीय रेट/घंटों पर निर्भर)। इसके अतिरिक्त, समय पर पानी मिलने से पैदावार/क्रॉप इंटेंसिटी में वृद्धि का आर्थिक लाभ अलग से जुड़ता है—दुबारा/तीसरी फसल का मार्जिन पेबैक को तेज़ कर देता है। यदि किसान अंश पर आंशिक बैंक लोन लिया है और ROI ~2–3 सीजन आता है, तो चौथे सीजन से शुद्ध लाभ बढ़ता है। DC पंप/माइक्रो-इरिगेशन जोड़कर ऊर्जा/पानी की दक्षता और सुधरती है। यह मात्र एक शिक्षात्मक उदाहरण है; आपकी साइट की हेड, जल उपलब्धता, धूप, फसल पैटर्न और स्थानीय लागतें वास्तविक परिणाम तय करेंगी।
सावधानियाँ, मेंटेनेंस और आम गलतियाँ
(1) साइट असेसमेंट बिना क्षमता चुनना—गलत HP/हेड से डिस्चार्ज कम पड़ता है; हमेशा हाइड्रोलिक कैलकुलेशन कराएँ। (2) नॉन-एम्पैनल्ड वेंडर—सब्सिडी/वारंटी खतरे में पड़ती है; केवल अधिकृत सप्लायर लें। (3) स्ट्रक्चर/एंटी-थेफ्ट/विंड-लोड की अनदेखी—मज़बूत फाउंडेशन, अर्थिंग, थंडर-प्रोटेक्शन और फेंसिंग करें। (4) पैनल सफाई/AMC टालना—धूल/शेडिंग से आउटपुट 10–20% घट सकता है; मासिक क्लीनिंग प्लान बनाएं, सालाना इंस्पेक्शन कराएं। (5) इनवॉइस/सीरियल/रिमोट-मॉनिटरिंग का रिकॉर्ड न रखना—किसी भी वारंटी/क्लेम में दिक़्क़त होती है; सभी दस्तावेज़ सुरक्षित रखें। (6) ग्रिड-हाइब्रिड में नेट-मीटरिंग नियम न पढ़ना—मीटरिंग/बैकफीड के नियमों का पालन करें। (7) एजेंट को नकद अग्रिम—पोर्टल/बैंकिंग चैनल के बाहर भुगतान से बचें। अंत में—सब्सिडी प्रतिशत, कैप, और पात्रता राज्य-वार बदलती है; केवल आधिकारिक पोर्टल/जीआर/नोटिफिकेशन की शर्तें ही मान्य मानें और किसी भी संदेह में विभागीय हेल्पडेस्क से लिखित स्पष्टता लें।
