Property Rights – अब बेटियों को भी पिता की संपत्ति में बेटे जितना ही अधिकार मिलेगा—यह बात अब न्यायालयी व्याख्या और कानून दोनों स्तरों पर साफ़ हो चुकी है। मुख्य सिद्धांत यह है कि बेटी जन्म से परिवार की सह-हिस्सेदार (coparcener) मानी जाती है, इसलिए पूर्वजों से चली आ रही पैतृक संपत्ति में उसका हिस्सा बराबर है। शादी हो चुकी हो या नहीं, यह अधिकार प्रभावित नहीं होता; बेटी पर ज़िम्मेदारियाँ भी वैसी ही रहेंगी जैसी अन्य सह-हिस्सेदारों पर होती हैं। ध्यान रहे, स्व-अर्जित संपत्ति में पिता वसीयत लिखकर अलग व्यवस्था कर सकते हैं, इसलिए “हर हाल में बराबर हिस्सा” कहना सही नहीं; वसीयत न होने पर उत्तराधिकार के नियम लागू होते हैं। व्यवहार में, रिकॉर्ड दुरुस्त कराना, हिस्सेदारी का लेखा बनवाना और आपसी सहमति से बँटवारा कराना ज़रूरी कदम हैं। यह बदलाव बेटियों को आर्थिक सुरक्षा देता है, पारिवारिक निर्णयों में उनकी भूमिका मज़बूत करता है, और पीढ़ियों से चला आ रहा भेदभाव मिटाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है—बशर्ते परिवार रिकॉर्ड, तारीख़ों और काग़ज़ात पर पूरी तरह सतर्क रहे।

क्या बदला है और किस पर लागू होगा
पैतृक हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की coparcenary में बेटियाँ अब जन्म से सदस्य मानी जाती हैं, इसलिए पैतृक ज़मीन-जायदाद में उनका हिस्सा बेटों के बराबर है। शादी या पिता के जीवन/मृत्यु की स्थिति से यह अधिकार खत्म नहीं होता; बेटी भी हिस्सेदारी के साथ ऋण/दायित्व में समान रूप से बंधी रहती है। यह व्यवस्था मुख्यतः हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख समुदायों पर लागू होती है; मुस्लिम, ईसाई या पारसी उत्तराधिकार अलग कानूनों के तहत चलते हैं। पैतृक संपत्ति का अर्थ है वह संपत्ति जो पीढ़ियों से बिना विभाजन चली आई हो; जबकि स्व-अर्जित संपत्ति पर मालिक अपनी वसीयत से अलग प्रावधान कर सकता है। यदि वसीयत नहीं है, तो वैधानिक उत्तराधिकार के अनुसार बेटा-बेटी, पत्नी व अन्य वर्गों को हिस्सा मिलता है। व्यावहारिक रूप से, “बेटियों का बराबर अधिकार” का मतलब है—लेखा-जोखा में नाम दर्ज होना, बँटवारे की सूची में बराबर अंश दिखना, और राजस्व/नगर रिकॉर्ड में वही अधिकार प्रतिबिंबित होना।

किन दस्तावेज़ों से अधिकार साबित होंगे
बराबर हिस्सेदारी को जमीन पर उतारने के लिए काग़ज़ात मज़बूत होना ज़रूरी है। सामान्यतः परिवार वृक्ष/वंशावली, जन्म प्रमाण पत्र, आधार/पहचान, पैतृक संपत्ति के रिकॉर्ड (खतौनी/खसरा/RTC/7-12/फरद), पुराने बँटवारे या समझौते की प्रतियाँ, और टैक्स/चालान आवश्यक होते हैं। शहरी संपत्ति में सेल डीड, पुराना कब्ज़ा सबूत, mutation/नामांतरण प्रविष्टियाँ और नगरपालिका के प्रॉपर्टी टैक्स रिकॉर्ड अहम हैं। यदि पहले कोई रिलीज़ डीड/त्याग-पत्र साइन कराया गया था, तो उसकी वैधता, स्वेच्छा और स्टैम्प-रजिस्ट्रेशन की जाँच करनी होगी। वसीयत मौजूद होने पर उसकी प्रामाणिकता/प्रोबेट की स्थिति देखी जाती है। बहनों के लिए समान हिस्सा दिखाने वाली ड्राफ्ट पार्टिशन डीड तैयार कर, सभी सह-हिस्सेदारों के हस्ताक्षर और गवाह जुटाना उपयोगी रहता है। डिजिटल भूमि अभिलेख पोर्टल पर नाम जोड़ने/सुधार के लिए आवेदन और संबंधित राजस्व दफ़्तर की रसीद/ऑर्डर सुरक्षित रखें।

अपना हिस्सा पाने की प्रक्रिया—स्टेप बाय स्टेप
सबसे पहले परिवार में बैठकर हिस्सों की सूची (साझा सहमति) बनवाएँ और उसे लिखित रूप दें—ड्राफ्ट पार्टिशन डीड या फैमिली सेटलमेंट। इसके बाद नज़दीकी तहसील/राजस्व कार्यालय में नामांतरण (mutation) के लिए आवेदन करें, जहाँ राजस्व रिकॉर्ड में बेटियों के नाम जोड़कर हिस्सा दर्ज किया जाता है। शहरी संपत्ति में सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में पार्टिशन/सेटलमेंट डीड का स्टैम्पिंग व रजिस्ट्रेशन कराएँ, फिर नगरपालिका/हाउस टैक्स रिकॉर्ड में संशोधन करवाएँ। यदि सहमति न बने, तो सिविल कोर्ट में विभाजन व कब्ज़ा (partition and separate possession) का दावा दायर करें; साथ में अंतरिम आदेश (status quo/अस्थायी रोक) का अनुरोध करें ताकि संपत्ति बेची या गिरवी न हो। मध्यस्थता/लोक अदालत का विकल्प समय व खर्च बचा सकता है। सभी काग़ज़ात, गवाह और पुरानी प्रविष्टियाँ व्यवस्थित रखें; हर आदेश/रसीद की प्रमाणित प्रतियाँ बनवाकर सुरक्षित रखें, ताकि आगे बैंक/लोन/बिक्री के समय प्रक्रिया सरल रहे।
महत्वपूर्ण सावधानियाँ और आम गलतफहमियाँ
पहली गलती यह मानना है कि “शादीशुदा बेटी को हिस्सा नहीं मिलता”—यह गलतफ़हमी अब मान्य नहीं। दूसरी, कई लोग सोचते हैं कि मौखिक त्याग मान्य है; वास्तविकता में, बिना स्टैम्प/रजिस्ट्रेशन के लिखित रिलीज़ डीड के त्याग पर विवाद खड़ा हो सकता है। तीसरी, वसीयत को नज़रअंदाज़ कर देना; लेकिन स्व-अर्जित संपत्ति में वसीयत प्रधान होती है, इसलिए उसकी क़ानूनी स्थिति जाँचें। चौथी, रिकॉर्ड अपडेट न कराना; mutation/नगर रिकॉर्ड में नाम न जुड़ने पर भविष्य में बिक्री/लोन/विकास मुआवज़े में समस्याएँ आती हैं। पाँचवीं, समझौते में “समान हिस्सा” लिखकर भी माप/सीमा तय न करना; बाद में कब्ज़ा और उपयोग को लेकर टकराव बढ़ता है—स्पष्ट नक्शा/एनेक्सचर जोड़ें। छठी, टैक्स/स्टैम्प ड्यूटी/कैपिटल गेन की अनदेखी; वित्तीय सलाह लेकर कदम बढ़ाएँ। और अंत में, हर क़दम पर विश्वसनीय वक़ील/ड्राफ्ट्समैन की मदद लें, ताकि बेटी का अधिकार काग़ज़ और ज़मीन—दोनों पर मजबूत हो।